अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, June 23, 2016

ग़ज़ल

रात ख़ामोश लोरी सुनाने लगी
ऐ ख़्वाब ठहर नींद आने लगी


तस्सवुर की तितली सपनों आ
मेरे नग़मों में रंग सजाने लगी


चंद्रमा के आईने में चाँदनी मुझे
तेरा मासूम अक्स दिखाने लगी


उसे छूकर इधर जो आई पवन
कानों में सरगम गुनगुनाने लगी


रेज़ा रेज़ा महकती हूँ तेरी महक
ले गमक तेरी मुझमे सामने लगी 

S-roz

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