अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, April 24, 2016

पहर रात का तीसरा है

पहर रात का तीसरा है
मैं अपने जिस्म के बाहर खड़ी हूँ
भीतर इक अंधा कुआं है
जिसपर मैं डोल डालती हूँ
मेरी सांसों की रास
उसकी जानिब से 
ऊपर नीचे आ जा रही है
मैं उसको बाहर खींचती हूँ 
वो मुझको भीतर खींचता है
इसी तसलसुल में ....
मेरी नींद खुलती है या के लगती है 
मुझे........
इसका भी इल्म नहीं......
पहर रात का तीसरा है ।

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