अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Saturday, April 2, 2016

वसीयत

तुम्हे........ मैं
जो कभी...... न मिलूं 
तो गम न करना 
माना, तुमको अज़ीयत होगी 
तुमसे रुबरु मेरी हकीक़त होगी 

ये जिस्म जो फ़ानी है 
बे-मुरव्वत ज़िन्दगी की 
नामुराद कहानी है 
तब .......तुम्हे .........मैं 
उन्ही किताबों में मिलूंगी 
जहाँ.......... 
तुमसे लबरेज़ मेरे लफ्ज़ 
नज्मों की शक्ल में 
सांस लेते हैं 
लफ़्ज़ों से गुफ्तगू करते-करते 
जो तुम्हे नींद आ जाए 
तो अपने सीने पर
किताब रख 
सो जाना 
तुम पाओगे कि, 
इससे करीबतर 
हम और तुम 
कभी और कहीं 
रहे ही नहीं !
...............................................बस इत्ती सी है मेरी वसीयत !

2 comments:

  1. सरोज जी, आपके ब्लाॅग को हमने यहां पर Best Hindi Blogs लिस्टेड किया है।

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  2. best-hindi-poem-blogs में मेरे ब्लॉग को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

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