अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, August 13, 2013

"सजन बिन रतिया(भोजपुरी ग़ज़ल )

सजन बिन रतिया, खूब सतावे हमके
बनके छबि अन्हरवा, भरमावे हमके !

रतिया मा रही-रही निनिया उचीक जाले
झिन्गुरवा उनका नामे,गोहरावे हमके !

अब के सवनवा, ऊ अइहें जरुर एही आसे ...
मन के मोरवा बिन बरखा, नचावे हमके !

ओरी से बहल बयार, देके सनेस उनकर
छुआ के उनकर नेहिया, सोहरावे हमके !

बरखा, धरती अउर असमान के संसर्ग हवे
देखा के ई प्रीत,बुनिया रोज़ जरावे हमके !

मन मत कर थोर आ जईहें सजन तोर
कोठवा पs बईठल काग समुझावे हमके !
~s-roz~-------------------
झिन्गुरवा=झींगुर /अन्हरवा=अँधेरा /गोहरावे=पुकारना /बुनिया =बारिश की बूँद /नेहिया=स्नेह /सोहरावे=सहलाना /कोठवा=छत /मन मत कर थोर =मन छोटा न करना (मुहावरा)

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