अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Sunday, July 14, 2013

"अलविदा बे-तार के तार "

किफ़ायत वक़्त और लफ्जों में देता था महरूमी औ मसर्रतकी खबर
हमारे बीच का जो बे-तार का "तार "था, वो आज इतिहास हो गया !!

....
देश में 160 साल पुरानी तार सेवा रविवार से बंद हो गई ,हालाँकि आज के फास्ट युग में उसका कोई औचित्य था भी नहीं फिर भी एक अजीब से मायूसी सी हुई इस खबर को पढ़ते ही !
हमारी पीढ़ी जो न नूतन है न पुरातन ....बल्कि कॉकटेल युग की पैदाईश है इसका सबसे बड़ा फायदा यह ...
है कि हम पुरानी चीजों व मान्यताओं से लगाव भी रखते हैं और नई आधुनिक चीजों व मान्यताओं का पचाव भी कर लेते हैं ....!
इक जमाना था जब डाकिया दरवाज़े पर कागज़ का टुकड़ा लिए जोर से गुहारता था "टेलीग्राम " और घर में क्या अडोस पड़ोस तक में हडकंप मच जाता था ..जने क्या लिखा हो उस मुए तार में .....!
मुझे बचपन की एक घटना याद है .... हम तब कोलकता में रहते थे मेरी नानी सिवान(बिहार ) से आई हुई थी ....एक दिन डाकिया दरवाजे पर जोर से चिल्लाया "टेलीग्राम " नानी वहीँ बरामदे में बैठी मेरे सर इ तेल लगा रही थी ..उनका इतना सुनना था कि पहले एक दो गाली डाकिये को और फिर राग धर कर रोना शुरू ..."अरे हमर रमई के बपई रे मधुबन ई का हो गईल..... एह उमिर में देहिया छोड़ दिहलआआअह्हह्हह अरे मोरे राम जी अब का होईईइ !!!(अरे मेरे रमई के बापू मधुवन (देवर ) जो उनके गाँव आने के समय बीमार चल रहे थे ) इतने कम उम्र में हमें सब को छोड़ कर चले गये हम सब का अब क्या होगा ?)
डाकिया सुन्न सा वहीँ जडवत खड़ा नानी को एक टक देखे जा रहा था कि अचानक ऐसा क्या हुआ .....?मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही थी मुझे बस इतना ही समझ आया कि टेलीग्राम बड़ी बुरी चीज होती है ..... तब तक माँ भी किचन से बाहर निकल कर दौड़ी आई नानी को रोता देख वो भी रोने लगी ...! पापा जो ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे रोना सुनकर तुरंत बाहर आये उनकी कुछ प्रतिक्रिया होती उसके पहले ही डाकिये ने झट से तार पकड़ा दिया .... पापा ने एक नजर तार पर लिखे संदेश पर डाली .... उनके चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई !और माँ-बेटी का रुदन-राग को भंग करते हुए बोले अरे रो क्यों रहे हैं आपलोग मिठाई बांटों रीता(मौसी) को बेटा हुआ है ! इतना सुनना था कि दोनों के रोने को ब्रेक लग गया ....नानी तो दमाद से लजाते हुए के साड़ी के पल्लू से मुहँ ढककर कहने लगीं "नाही पाहून सपना बहुत बाउर देखले रहनी एसे बुझाईल अईसन ( नहीं दामाद जी सपना बहुत बुरा देखा था मैंने इसलिए ऐसा लगा कि खबर बुरी होगी )
ऐसी कई प्रतिक्रियाएं होतीं थी "तार" के आते घर ही क्या पूरा मोहल्ला सकते में आ जाता था !आज की वर्तमान पीढ़ी को इस बात का अहसास ही नहीं होगा कि तार सेवा कितनी खौफनाक और कितनी खुशगवार साबित होती थी। यह टेलीग्राफ सेवा ही थी जिसकी वजह से 1857 का पहला स्वतंत्रता आंदोलन विफल हो गया था। अंग्रेजों ने भारतीयों के दमन के लिए टेलीग्राफ सेवाओं का अपने अफसरों तक सूचना पहुंचाने के लिए जमकर इस्तेमाल किया था !
आज हर कोई मोबाइल, स्मार्टफोन, ईमेल और एसएमएस का इस्तेमाल कर रहा है !!जिसके एवज में सुबह की खबर शाम को बासी हो जाती है ...कभी तेजी से संदेश पहुंचाने का माध्यम रही है टेलीग्राफ की अक्षुण्ण सेवाओं को मेरा शत शत नमन एवं श्रद्दाजलि !!
~s-roz~

No comments:

Post a Comment