अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Tuesday, March 12, 2013

"अभी शेष समर है"

 
संवलाई साँझ के कंधे पर
आज उदासी का सर है !
बहती जल धारा है निकट ,
फिर भी क्यूँ शुष्क अधर है  ?
 
जो  बीता वो रज मात्र सा है ,
जीवन में अभी शेष समर है! 
लक्ष्य मेरा ,मृग मरीचिका  है ,
असम्भव सा जाने किधर है   ?
 
कुछ मिले त्यागी कीट पतंग से ,
बाकी जो हैं,वो बस पुष्प भ्रमर हैं !
पूछता अस्ताचल सूरज मलिन सा  
उगते सूरज पर सभी का नम क्यूँ सर है  ?
 
घुप घाटियों में बसते हैं हम सभी, 
और चढ़ना अभी उच्च शिखर है !
अमृत पीकर भी रहे हम नश्वर से ,
जो पी गया विष वह  क्यूँ अमर है ?
 
जाते हैं जहां सब हम वहां जाते नहीं 
अपने स्वभाव का कुछ ऐसा असर है 
दुरूह सही पर स्वंय प्रशस्त करते हैं मार्ग 
कभी देखते नहीं कौन सा क्षण या प्रहर है ? 
 
 
 

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