अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Thursday, August 9, 2012

"राम स्पर्श"

तुम्हारे शब्दों के"राम स्पर्श" ने
ह्रदय वन में,उगे बनफूल को
जाने कैसे तो, छुआ था
अब आकर देखो तो
वो रूप से नहीं
गंध से नहीं
वर्ण से नहीं
बल्कि सम्पूर्ण
वानस्पतिक तत्व से
अकेला ही जी-वन से भरा
उप-वन हो गया है
~s-roz~

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