अधूरे ख्वाब


"सुनी जो मैंने आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने "


डायरी के फाड़ दिए गए पन्नो में भी सांस ले रही होती है अधबनी कृतियाँ, फड़फडाते है कई शब्द और उपमाएं

विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ, "डायरी के फटे पन्नों पर" प्रतीक्षारत अधूरी कृतियाँ जिन्हें ब्लॉग के मध्यम से पूर्ण करने कि एक लघु चेष्टा ....

Friday, September 17, 2010

तथ्य ,कथ्य व सत्य

किसी भी घटना के तीन पहलू होते हैं पहला - तथ्य ,दुसरा- कथ्य ,तिसरा- सत्य इन् तीन पह्लुओं से किसी घटना को समझने की कोशिश करनी चाहिए पर हम ऐसा नही करते हमारा मन जो चाह्ता है हम वही देखते हैं उदाहरण के तौर पर सडक के किनारे फूटपाथ   पर लेटे एक् व्यक्ति को देख्कर वहा से गुजरने वाले लोगो के मन मे क्या खयाल आए ,जरा देखिए
  • शराबी --लगता है रात ज्यादा  पी गया !सुबह हो गई.अभी तक उतरी नही ,
  • साधु --आहा!!कैसा ,समाधिस्थ साधक !रामकृष्ण जैस परम्हँस   प्रतीत होता है ,
  • डाक्टर --शायद कोमा मे है !ब्रेन हेम्रेज"का केस लग रहा है
  • भंगेडी  --वाह!उस्ताद ओवर डोज लोगे तो यू ही पडे रहोगे हमसे सीखो
  • अमीर व्यापारी --क्या घोडे बेचकर सो रहा है !एक् हम हैं की चिन्ता और अनिन्द्रा से पीडित हैं
  • पुलिस वाला --चलो १० रुपये की आमदनी हुइ  ,फूट पाथ पर सोने की फीस वसूली जाय
  • अविवाहित् युवक --  कुवारों का  दुख देखो .अकेले जीना अकेले मरना 
  • विवाहित प्रौढ   - काश मुझमे इतनी हिम्मत होती की मै अपनी झगडालु पत्नी से भाग कर सडक पर ही सो जाता ,यह साहसी मर्द वाह भाई वाह !!
  • नेता --एक् वोट यहाँ पडी है !थोडी दया दिखा दूँ  तो मेरी हो जाएगी ."ले नोट  दे वोट"
  • अभिनेता --गज़ब का सीन  है !अगली  फिल्म मे मै यहि किर्दार करूँगा
  • आम आदमी--भाग लो यहाँ से बच्चू!मर गया होगा तो गवाही देनी पड़ेगी फिर वही कोर्ट कचहरी का चक्कर ....    
हमारा ज्ञान ,पुर्व अनुभव ,भय,सन्देह,विश्वास,सोच-विचार का ढंग हमारी दृष्टि को लगातार अपने रंग मे रंगता रहता है ,हमे वास्तविकता के  सीधे सम्पर्क मे नही आने देता ,'जो है 'वह नही देख पाते,क्योकी जो नही है 'हम उसमे उलझ जाते हैं घटना का यथार्थ अनभिग्य ही रह जाता है
किसी भी घटना के तीन पहलू होते हैं पहला - तथ्य ,दुसरा- कथ्य ,तिसरा- सत्य इन् तीन पह्लुओं से किसी घटना को समझने की कोशिश  करें ,जब हम किसी घटना के आस पास कोइ कथा गढ कर देखते हैं तो हम अपनी कल्पना को ही देखते हैं 
काश हम सत्य को देख पाएँ तो हमारा   जीवन दुख मुक्त हो जाय 
हर कथा व्यथा मे ले जाती है ,सत्य द्वार है आनन्द का ,सच्चिदानन्द का ...........................      
 
 


श्रोत -a book "full of life by shree shailendr OSHO

2 comments:

  1. आम आदमी की सोच ज्यादा मायने रखती है - उसका संवेदन शून्य होना समाज के लिए ज्यादा घातक है - - विचारणीय तथ्य प्रस्तुति करती पोस्ट.

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  2. ज़बरदस्त पोस्ट ..............मेरा नजरिया आपके ब्लॉग की अब तक की सबसे अच्छी पोस्ट.........मैं सहमत हूँ इससे.........इसको पढ़कर मुंशी प्रेमचंद जी की एक कहानी याद आ गयी जिसमे एक पार्क में एक जवान लड़की एक बेंच पर सो रही है और हर गुजरने वाला उस पर अपनी राय बताता जाता है .....प्रशंसनीय |

    कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
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